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सीमा शर्मा सृजिता

Tragedy Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Tragedy Inspirational

अन्त का प्रारम्भ

अन्त का प्रारम्भ

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मेरे जज्बातों को पैरों तले कुचल जब तुम मुस्कराये 

मुझ पर बार -बार जुल्म कर जब तुम मुस्कराये 

' कमजोर हूं मैं' ' गुलाम हूं मैं '

तुम खूब चिल्लाये 

पुरुषत्व की महानता पर जब तुमने गीत गाये 

तो जख्मी हुआ मेरा हदय हर पल

तुम्हारे दिये जख्म धीरे -धीरे नासूर बन गये 

और रिसने लगे बनकर लावा मेरी रूह पर

एक पावक स्वतः ही जल उठी और जलाने लगी मेरा रोम -रोम 

क्षीण कर मेरी सहनशक्ति उतर आई मेरी आँखों में 

अभी बन्द कर ली हैं मैंने आंखे 

मगर ध्यान रहे  ! अब बढे़ तुम्हारे कदम मुझ पर अत्याचार करने 

जिस्म ही नहीं आत्मा पर प्रहार करने 

तो मैं आँखे खोल लूंगी..... 

पावक भरी आंखों का खुलना

प्रारंभ है तुम्हारे अन्त का...... 


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