अनोखा ठिकाना
अनोखा ठिकाना
ढूंढ ढूंढ के थक गया इंसान
सुख का खजाना, नहीं मिला
किसी से भी इसका पता ठिकाना।
हर जगह ढूंढा इसको पर यह न मिल पाया,
बड़े बड़े मकानों में ऊंची ऊंची दुकानों में भी यह नजर न आया।
उम्र भी अब घटने लगी
हौसले की घड़ी भी टलने लगी अब तो खुद टूटने की आस है,
लगता है तू कहीं आसपास है, इसलिए हर पल
तेरी तलाश है।
आखिर एक दिन आवाज आई, कहां ढूंढता है भाई
अपने अन्दर तो झांक
दिल का दरवाजा तो खोल
क्यों बैठा है उदास मैं तो हर
पल हूँ तेरे पास।
बचपन में मैं तेरी मुस्कान था,
चाय की चुस्की मैं साथ खड़ा था,
आपके परिवार में पला था तू सब को भूल गया तभी
तेरे से दूर गया।
मैं हर पल बन कर रहा तेरा
छाया, जब भी तुमने मां बाप
से आशीर्वाद पाया।
मैं तो तेरी सफलता में रहा
मां की ममता में पला, रसोई के पकवानों मैं जला
मैं तो तेरा अहसास हूँ हर पल
तेरे पास हूँ।
क्यों भूल गया मेरी पहचान
इंसान को इंसान तो मान
खुद को समझ रखा है
तूने भगवान।
जो मिल जाये उसी में संतोष कर,
मुझे न फजूल बदनाम कर।
मेरे लिये दुखी मत हो
पैसे के लिये एक दूसरे को
मत खो, मेरा तो हर दिल में वास है, फिर तू क्यों उदास है।
मैं तो तेरा संतोष हूँ
मैं हर पल निर्दोष हूँ
कर ले सच की पहचान
मत बन अनजान क्यों समझता है अपने को भगवान।
तू गूंगे की जवान बन
अन्धे की आंख बन
गरीब की पहचान बन
मैं खुद ही तुझे पा लूंगा
अपने आप ही तुझे बुला लूंगा, यही मेरा ठिकाना है
फिर तू क्यों अनजाना है।
सुदर्शन सुख का हर दिल
में वास है फिर भी हर कोई
उदास है, हरेक इसको रख
न पाया मोह माया में इंसान
इतना फंस गया हर अपने को पराया समझ गया
चैन और लुत्फ खो गया, इसलिए सुख
बेगाना हो गया।