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DRx. Rani Sah

Classics

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DRx. Rani Sah

Classics

अंजानी सी इस बस्ती में

अंजानी सी इस बस्ती में

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अंजानी सी इस बस्ती में,  

अपना सा मकान लगता है, 


मायूसी बेबसी मे लिपटा, 

हर इंसान लगता है, 


सच कहु तो सिर्फ सबक ही, 

अपना बनकर साथ है, 


हर ख्याल हर ख्वाब, 

अब बेजान सा लगता है, 


थोड़ा संभलना सिखा ही था, 

इन बहारों के संग, 


पुरानी खयालातों को समेट कर, 

एक मुस्कुराहट होठों पे रख, 


सबने कहा आजकल तू, 

जरा बीमार सा लगता है। 


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