अनछुआ एहसास
अनछुआ एहसास
ना बस में रहा कुछ,
ऐसी खोई मैंने सुध बुध।
गए पिया ना जाने किस ओर,
एक मायूसी है छाई हर ओर,
आंखों को चैन नहीं,
अपने हाल की हमें कुछ खबर नहीं।
ना बस में रहा कुछ,
ऐसी खोई मैंने सुध बुध।
तेरे खतों से एक भीनी खुशबू आती है,
वो खुशबू मेरी सांसों को महका जाती है,
दर्द भी मीठा है लगता अगर तुम साथ हो,
कोई रास्ता मुश्किल नहीं अगर तुम हमसफर हो।
ना बस में रहा कुछ,
ऐसी खोई मैंने सुध बुध।
किसी धुन पर तेरे साथ झूमना है,
कोरे कागज़ पर तेरे लिए एक गीत लिखना है,
कभी तो गुज़र शहर से मेरे,
कभी तो ठहर दो पल करीब मेरे ।
ना बस में रहा कुछ,
ऐसी खोई मैंने सुध बुध।
तू सावन की रुत सा है,
और मन मेरा प्यासा है,
तू मिला है मुझे किसी दुआ के सबक की तरह,
साथ चल तू मेरे किसी लंबे सफर को एक हमराही की तरह।