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अम्बुआ के तले

अम्बुआ के तले

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कल जब लाख कोशिशो के बाद

इजहारे मुहब्बत हम तुम से ना कर पाए

एक-एक पत्ते पे लिखा तेरा नाम और

अम्बुआ कि छांव तले कुछ सपने छोड़ आए

शब्दो के नाजुक से बोझ को वो भी न सह पाए

और तेज हवा मे लेकर तेरा नाम वो उड़ गए

आसमान मे उड़ते वो अरमान मेरे जिन्हे पकड़ना

किसी परिन्दे को पकड़ने कि नाकाम कोशिश सा रहा

श्यामल साँझ भी ले गई उसे अपनी आगोश मे

और चाँद कि दुधिया रोशनी मे छुपा लिया

प्यासा सा मन उसकि रौशनी को व्याकुल सा रहा

वो चाँद भी मुस्करा रहा था मेरे पागल पन पर

तुम साथ होते तो जान पाते कितने अभागे हो तुम

तुमने खो दिया मेरे कोमल शब्दो के एह्सास को

शायद कह पाती कि प्यार कितना है तुम से

अब लाख कोशिशो के बाद भी इजहारे मुहब्बत

ना कर पाऊंगी ,पर आज भी वो अम्बुआ कि छांह

वही पर करती है इंतज़ारतेरे मेरे प्यार का


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