सिर्फ तुम
सिर्फ तुम
सुनो
आज फिर अल्फाज़ो में नशा सा है
मानो तुम संग फिर बहकना चाहते हों
लेकर कागज़ कलम हाथों में
एक ग़ज़ल तुम पर कहना चाहते हो
ओढ़ लूं एक कशिश फिर तेरे नाम की
तेरी पलकों में खुद को उतारूँ ज़रा
तेरे कदमों में रख कर कदम अपने
एक प्रीत का जहां बसा लूं ज़रा
आज थाम ले हाथ मेरा बेपरवाह तू
मेरे आँचल में खुद को सजा ले जरा
कुछ बिखरी सी लटे मेरे गेसुओं की
तू उन्हें देख कर गुनगुना ले ज़रा
आ फिर वादियों में गूंज तेरे मेरे प्यार की
एक एहसासों भरी हसीं दास्ताँ .....

