अमावस का चन्द्रमा
अमावस का चन्द्रमा
अमावस को चन्द्रमा
कहाँ से निकलेेगा ।
रात है अंधेरी
कहाँ से दिखेगा ।
ऊपर से काली
घनघोर घटाये ।
बरसात के मौसम
की चलती हवाये ।
ठंडी हवायें
मन को लुभाये ।
यादे किसी की
मन मे सतायें ।
बारिश की बूंदे
लगे कितनी प्यारी
तपते बदन को
मिले राहत थोरी ।
चाँद है न तारे
चारो तरफ है
अंधेरे ही अंधेरे ।
अमावस को चन्द्रमा
निकलता नही है ।
नियम जो बना है
बदलता नही है ।
बादल गरजते है
बिजली कड़कती है
इधर उधर कही कहीं
काली परछाई दिखती है ।
अमावस की रात है
डरावनी लगती है ।
बरसात का मौसम
झमाझम बारिश
सुहानी लगती है ।
तन को भिगो दे
मन को सुकून दे
फिर भी ये रात
सुहानी लगती है ।
अमावस की रात है
चन्द्रमा बिन ऐसी ही
काली अंधेरी होती है ।