अक्स
अक्स
मेरी उनसे कुछ ऐसी दोस्ती थी
कि मेरी सुबह उनसे थी
और शामें उनके साथ ही ढलती थी
वो हर रात मुझसे मिलने आते
जब भी मुझे कमज़ोर पाते
कभी वो मुझे नींद से उठाते
तो कभी नींद के आगोश में ले जाते
कभी कभी दिन में भी मुलाक़ात होती
जब कभी मैं उदास होती
उन्हें मेरी ज़रूरतें मालूम थी
वो मुझे पहचानते थे
मुझे उन्हें सबब न बताना पड़ता
वो मुझे इस कदर जानते थे
वो जब भी मुझसे मिलने आते
एक नई कहानी साथ लाते
जब भी मेरे हाथ काँपते
वो हौले से मेरा हाथ थामते
कितने मासूम से थे वो
बिन बोले सब कहते थे वो
जाने अंजाने ,कई राज़ खोल देते थे
मेरी इच्छाएँ, अपनी ज़ुबाँ से बोल देते थे
वक्त बेवक़्त मैं मुस्कुरा दिया करती हूँ
आज भी उन्हें याद करती हूँ
उनसे मिलने के बहाने खोजती हूँ
कैसी होगी अगली मुलाकात
बस यही सोचती हूँ
अपनी निगाहों में
उनके निशाँ तराशती हूँ
सबकी आँखों में
उनका अक्स तलाशती हूँ।