अकेली औरत
अकेली औरत
एक ढर्रे का जीते जीते
कितनी अकेली होती है औरत,
भूल जाती है, अपना वजूद,
नफा नुकसान या कोई दुर्घटना,
अनजाने ही मढ़ी जाती हैं उसके सर पर,
ऐसे ही अपराध बोध का जीवन जीते जीते,
औरत की गरिमामई जिंदगी,
अंततः रुका हुआ पानी हो जाती है।
एक ढर्रे का जीते जीते
कितनी अकेली होती है औरत,
भूल जाती है, अपना वजूद,
नफा नुकसान या कोई दुर्घटना,
अनजाने ही मढ़ी जाती हैं उसके सर पर,
ऐसे ही अपराध बोध का जीवन जीते जीते,
औरत की गरिमामई जिंदगी,
अंततः रुका हुआ पानी हो जाती है।