अकेलापन
अकेलापन
न जाने क्यों ?
ये अकेलापन मेरी पहचान बन गया है
इस कलम से किताब तक का सफर
मेरा जहाँन बन गया है
मेरी उदासी, मेरी हँसी
मुझमें सिमटी रह जाती है
जिंदा रहने की कई कोशिशों में
एक मौत बह जाती है
न जाने क्यों?
जिंदगी का हर किस्सा
बेईमान बन गया है
ये अकेलापन मेरी पहचान बन गया है
सूरज की किरणे अंधकार मिटा देती हैं
चाँदनी रात्री का श्रृंगार जुटा देती है
बहारों की कारीगरी, पतझड़ को भुलाने में
कामियाब होती है
तपस्वियों जैसे शांत समुद्र में
उठती- गिरती लहरें
उसकी किताब होती हैं
जो मुझे किसी मुकाम ले जाये
न जाने क्यों ?
वो रास्ता मुझसे अंजान बन गया है
ये अकेलापन मेरी पहचान बन गया है
जब प्यासी जमीं पर बादल बरसता है
तो लगता है जैसे
आसमां जमीं के लिए अपनी मोहब्बत दिखाता है
मालूम है हर शमा एक मौत है
फिर भी जलता हर परवाना
मोहब्बत सिखाता है
मेरा दिल खाली एक मकान बन गया है
अकेलापन मेरी पहचान बन गया है
सब कुछ तो ठीक है
फिर भी क्यों ये उदासी है
आने वाला हर पल गुलजार होगा
फिर भी क्यों लगे इस दामन में
खुशियाँ जरा सी हैं
मुझसे हर मंजिल दूर
क्यों दूर भगवान बन गया है ?
अकेलापन मेरी पहचान बन गया है।