अकेले होने का एहसास
अकेले होने का एहसास
कुछ यादों ने हमें रुलाया है
बीत गए हैं रिमझिम बौछारों के दिन
ऐसा लगता है अब पतझड़ ने हमें बुलाया है
कहीं दूर जा बसा है स्नेह और ममता का
वो जहां
कुछ नजर नहीं आता अंधेरों में भटक गयी हूँ
न जाने मैं कहाँ?
आज आँसुओं से गहरी दोस्ती लगती है अपनी
मुस्कान ने तो जैसे मुझसे अपना दामन छुड़ाया है
आज सूरज की किरणें तो आती है
पर न जाने क्यूँ?
चिड़ियों ने गीत गाना छोड़ दिया है
फूल भी खिल जाते हैं
इंद्धनुष् के रंग भी मिल जाते हैं
पर ऐसा लगता है जैसे
बसंत ने आना ही छोड़ दिया है
जिसमें खुशबू भी है रंग भी है
फिर भी आँखों को न भाये
न जाने
वक़्त ने ये कैसा गुल खिलाया है
सबको ढूढ़ते - ढूढ़ते
खुद को कहीं खो दिया है मैंने
कुछ अलग थी अपनी दास्तां
पर खुद में एक अलग ही बीज बो दिया है मैंने
खुश भी हूँ उदास भी हूँ
समझ नहीं आता
इसे मैं अपना उठना कहूं या
खुद को कहीं गिराया है
आज अकेले होने का एहसास हो आया है।