मेरा परिवार
मेरा परिवार
अपने परिवार के बारे में मैं क्या सुनाऊँ?
मरे पास शब्दों की कमी है, मैं क्या बतलाऊँ?
मेरी माँ जिसने पहले बच्चे के रूप में
एक बेटी को जन्म दिया
उच्च विचारों वाली मेरी माँ ने
अपने साथ- साथ मुझे भी परमसौभाग्य का भागी किया
बेटी की पहली किलकारी सुन
मेरे पिताजी भी उदास नहीं प्रफुल्लित हुए
मुझे सीने से लगा
उन्होंने मन में जलाये लाखों दिए
आज जहाँ समाज का एक वर्ग
बेटी को पाप समझ
उसकी कोख में ही जान ले लेता है
वहाँ मेरा परिवार मुझे सरस्वती नाम देता है
जहाँ गम का अंधेरा नहीं
सिर्फ खुशियों का भंडार है
ऐसा मेरा परिवार है
मैं जैसे- जैसे बड़ी हुई
मेरे परिवार ने मुझे चूल्हा -चौका, झाडू- बर्तनों
में नहीं बांधा
बल्कि मेरे सर्वांगीण विकास के लिए
विघालय से जोड़ दिया मेरा नाता
माँ का सर दुःखा और कमर ने रुलाया
फिर भी माँ ने मेरी पढाई में दखल न दिया
सर पे पानी के मटके उठाये
मुझे ठंड न लगे
इसलिए कंडे जुटाये
मुझे याद है
मुझे स्कूल भेजे, डिग्रियाँ दिलाए
इतनी न मेरे पिताजी की कमाई थी
मैं कभी नहीं भूलुंगी
कि मेरे पिताजी ने
अपना खून पसीना बहा
कैसे मेरे स्कूल की फीस, कॉलजे की किताबें
जुटाई थी
जिसने झूठ , बईमानी और बुराइयों से परे
मुझे अच्छाई, सच्चाई और संस्कारों की चुनर ओढाई
ये ही वो घर दवार् है
ऐसा मेरा परिवार है
मैं राह भटक न जाऊँ
इसलिए मुझे ज्ञान का प्रभात दिया
मेरी छोटी छोटी उन्न्तियों पर
मेरी पीठ थपथपाई
माता- पिता, भाई -बहन
हर किसी ने मेरा साथ दिया
आज सात वचनों में जिनके साथ बंध गयी
वो भी मेरे सपनों को पूरा करने को तत्पर रहते हैं
घर का काम छोड़ तुम अपनी कविता लिख लो
ऐसा मेरी सासू माँ, मेरे ससुर जी भी कहते हैं
मुश्किलों और परेशानियों ने मेरे सपनों को तोड़ दिया
अब जिसने सपनों का फिर सी किया जिर्णोधार है
ऐसा मेरा परिवार है।