अजनबीपन का एहसास है
अजनबीपन का एहसास है
अजनबीपन का एहसास है
वजह स्पष्ट है
यह एक आभासी परिवेश के
प्रभाव है
मसलन चिलचिलाती धूप को
नयी सुबह कहने के
विज्ञापित विचार।
अनावश्यक को आवश्यक
निरूपित करने का आंदोलन।
देश को न्यायालय बनाने
की पुरजोर कोशिशें
और उसमें
चलती हुयी बहसें
गुजरते हुये गवाह।
लगता है हर चीज के पास
उसका एक रिपल्का
बलात स्थापित कर दिया गया है।
जैसे राज्य व्यवस्था को
सामाजिक ताना बाने को
छिन्न भिन्न करने का
कोई लोकप्रिय प्रयास चल रहा है
और हम मूल में हैं
सामाजिक व्यवस्था के
राजीनीतिक व्यवस्था के
अपनी सभ्यता और
अपने संविधान के साथ।
जाहिर है अजनबी तो होना ही था
और अजनबीपन का एहसास भी
कुछ यूं ही है।
