जब मिट जाती हैं पटवन से प्यास
जब मिट जाती हैं पटवन से प्यास
सूखकर भूमि किसान का
पानी को हो जाते हैं त्रास्त
तब जाकर बादल हैं आते
जब मिट जाती हैं पटवन से प्यास।।
अच्छी खासी आंधी भी साथ है लाते
कर देते हैं अच्छे खासे फसल को बर्बाद
बेचारे किसान सर पटक - पटक रोते
तब सरकार देती आश्वासन की सौगात।।
मिलते नहीं छनिक सी भी खुशी
की चाटुकार देते हाथ पसार
मेरी भी हिस्सा दे दो
भैया मेरे किसान सरदार।।
तुम ही मालिक हो तुम्हीं हो अन्न आहार
तुम से ही खुश है मेरे नन्हे-मुन्ने पालनहार
तुम्हारे बिन कुछ भी नहीं एक फूटी कौड़ी तक
तुम जलते हो तो रोशन होता है मेरा घर परिवार।।
चीख कर मर जाते,सुनते नहीं कोई पुकार
अन्नदाता निभाते कैसे,इतने बड़े किरदार
घर चलाते,खुश हैं रहते,भरते पेट लाखों हजार
सचमुच वह किसान नहीं, भगवान का है अवतार
सचमुच वह किसान नहीं, भगवान का है अवतार।।