अजनबी सी चाहत
अजनबी सी चाहत
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हवा ज़ब तेरी जुल्फ को
छूके गुजरती है
अजनबी सी चाहत
दिल में ही मचलती है।
कल वो फिर से
मिल जाये एक बार
तो मैं कह दूं कि,
अपनी जुल्फें
बांधकर चला करो
वरना हजारों
क़त्ल का इल्जाम
तुम्हारे सर होगा।
मगर ज़ब वो सामने आती हैं,
शर्माकर नजरें झुका लेती हैं
मैं सहम सा जाता हूँ,
औऱ कुछ ना कह पाता हूँ।
मेरी दिल्लगी को वो
कमजोरी समझ जाती है
खुद तो सो जाती है शाम को ही
मुझे पूरी रात नींद नहीं आती है।