STORYMIRROR

S N Sharma

Abstract Romance

4  

S N Sharma

Abstract Romance

अजनबी अनजान वो,,,,

अजनबी अनजान वो,,,,

1 min
253


ट्रेन में मुझको मिली थी एकदम अनजान वो।

काली जुल्फे गोरा चेहरा जन्नतों की शान वो।

गुम थी मोबाइल में वो कोई कहानी पढ़ रही।

पात्रों के हर भाव को चेहरे पर अपने गढ़ रही।

मुस्का रही कभी हंस रही कभी गमजदा चेहरा लिए।

मैं देखता हर भाव उसका भाव अचरज के लिए।

वह चांद का टुकड़ा थी तो आंखें मेरी चकोर थी।

मदहोश सा था मन मेरा नजरों उसकी ही ओर थीं।

ट्रेन का चलना हुआ इक लोफर खड़ा था ताक में

फोन उसका छीन कर भागा वह अंधेरी रात में।

बिजली सी मुझ में भर

गई भागा उतरकर गेट से।

मारा उसे एक पंच मैंने और ले फोन भागा तेज से।

क्रोध में उसने भी मुझ पर बार चाकू का किया।

घाव बाजू में हुआ पर मैंने फोन ना उसको दिया।

ट्रेन ने रफ्तार पकड़ी पर दौड़कर मैं भी चढ़ गया।

भाव शाबाशी का मैं सब की निगाहों में पढ़ गया।

स्कार्फ उसने निकाल अपना बांधा था मेरे घाव पर।

सम्मान मेरे वास्ते उसके हाव भाव में आया नजर।

परिचय हुआ और चल पड़ा जिंदगी का नया सफर।

फिर प्यार हम में हो गया वह बन गई मेरी हमसफर।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract