अजब चलन है इंसां का
अजब चलन है इंसां का
अजब चलन है दुनिया का,
आज अजब चलन हैं इंसां का,
अपनों का हो या गैरों का ,
हर रिश्ता बना है मतलब का।
बाज़ार सजता है यहां झूठ का,
सौदा होता है जहां सच्चाई का,
हर व्यापार होता है झूठ का,
हर व्यवहार भी होता है मतलब का।
आज हर रिश्ते में है धोखा,
और हर नाते में भी है धोखा।
धोखे की बनी है आज सारी दुनिया,
जहां हर बात में है बस धोखा।
प्यार भी हैं एक बड़ा धोखा।
रिश्ता टूटा है मन से मन का,
झूठ की इस नगरी में हुआ है,
इंसान भी खुद एक धोखे का,