अहसास
अहसास
हुआ होता गर अहसास
गर काले बादलों
में छुपे उन काले पलों का।
बरस जाते हम
उस पल ही
लेकर रूप स्वयं बादलों का
नाहक ही पालते रहे ख्वाबों
के कबूतर।
संवारते रहे जिंदगी को
खुशनुमा नगमा समझकर
होते होते रूबरू
हकीकत ने देर बड़ी
कर दी।
हमारी आशाओं के
मोती
माला से अलग कर दिये
बिखेर दिये वो
सारे सपने,
जो पलकों के आसपास
पल रहे थे
ये अहसास ही न था
हम केवल काँटो पर
चल रहे थे।।
