अग्नि परीक्षा
अग्नि परीक्षा
युग के युग बदल गए पर आज तक मानसिकता वही है,
उत्पीडन से पीड़ित आज भी नारी की दशा वही है।
सृष्टि के प्रथम सोपान सृष्टि का प्रथम बीज हूँ मैं कहते हैं,
क्यों मेरे चरित्र मेरी भूमिका पर अंगुलियां उठा प्रश करते हैं।
पवित्र हूँ मैं या नहीं हूँ किसी अनजान रिश्तों के साथ,
अग्नि परीक्षा की अंतस यात्रा में डाल देते है कैसा अंजाम।
कब तक मानवीय पीड़ाओं का दर्द ऐसे ही सहती रहूँ,
त्याग और बलिदान की वेदी पर नव विकल्प ढूंढती रहूँ।
मैं हूँ तभी तो पुरुष है ,विश्व निर्मात्री मै पर क्या अस्तित्व है मेरा,
स्वयंसिद्ध सात्विक, मानवीय मूल्यों की रक्षक ऐसा व्यक्तित्व है मेरा।
क्यों हर काल में समाज द्वारा मुझे अपमानित किया गया,
सीता की तरह जंगल में मुझे रूदन के लिए छोड़ दिया गया।
क्या मेरा कोई अस्तित्व नहीं है इस दुनिया मे मुझे बताओ ना
जीने की तमन्ना है मेरी मुझे अब पीड़ित कर मत रूलाओ ना।
