अग्नि परीक्षा
अग्नि परीक्षा
क्या लगता है हम सब को अग्निपरीक्षा से,
हाँ एक बार सुना था हमने सीता ने दी थी
अग्निपरीक्षा अपने अस्तित्व की पुनर्स्थापना के लिये
शायद दाग थे लोगों के मन में सीता के प्रति
और सीता जलीं नहीं धधकती हुयी आग में
और पवित्र हुयी शायद परीक्षा लेने वालों के मन में।
पर क्या हुआ सीता की पवित्रता का
एक बार फिर बन गयीं।
तो कैसा लगता है अब अग्निपरीक्षा से दें न दें
एक ही बात है।
हाँ अस्तित्व में है अग्नि, और अग्निपरीक्षा की संभावना
और यह अग्नि परीक्षा खुद ही देनी है
खुद के अस्तित्व के लिये
जब सीता की अग्नि परीक्षा पर दाग लग सकता है,
पास और फेल होने का
अंतर जाता रहता है
तो हम क्या हैं।
फिर भी हमें देनी है एक अग्निपरीक्षा
और ये अग्नि परीक्षा है अस्तित्व में अपने को
खाक में मिला कर खुद को पा जाने की।
चलेंगे अस्तित्व के पार चलेंगे क्या चल रहे हैं
और ये जो जड़ता है दुनियादारी की आग सी
धधकती हुयी, बुझती जा रही है हर उस जगह पर
जहाँ हम पांव रखते हैं
हर कदम अपनी ओर चल रहे हैं
और लम्हे धधक कर हमारे होने का हिस्सा बन रहे हैं।
सीता अग्नि को समर्पित हुयी थीं अपनी पवित्रता के लिये
और हमें जो अपवित्र कहता हैं झोंक देते हैं
उसको उसी आग में जिसमें सीता न तो जलीं थी
न पवित्र हो सकी थीं।