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Dharm Veer Raika

Abstract Children Stories Children

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Dharm Veer Raika

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अधूरी ख्वाहिशें !

अधूरी ख्वाहिशें !

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लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन थोडा़ बहुत लिख रहा हूंँ !

थोड़े से लफ्जो मे बहुत कुछ लिख रहा हूंँ

सूना है अपने दिल में हर कोई ख्वाहिशें छुपा कर रखता हैं,

थोड़ी सी ख्वाहिशें तो मेने भी अपने दिल में छुपा रखी थी !

सोचा मिलेगा जब कोई ऐसा शख्स,

जिसके साथ अपनी हर एक ख्वाहिश पूरी करूँगा

वो शख्स तो आया मेरी जिन्दगी में,

सोच रहा था की उसको हर एक ख्वाहिश बताऊँ जो मैंने

अपने दिल में छुपा रखी थी !


पर क्या करुँ डर था कही वो खफा ना हो जाये

कोशिश तो हर रोज करता था की उसको बता दो

मेरे दिल का हाल पर क्या करूँ जब देखता था

उसका चेहरा तो खौफ के मारे मेरी जुबान बन्द हो जाती थी l


एक दिन मेरी जिन्दगी मे एक ऐसा मोड़ आया

हर ख्वाहिशें दबी की दबी रह गई

देखते ही देखते वो दुनिया को अलविदा कह गए

मेरी हर एक ख्वाहिश अधुरी रह गई

इन ख्वाहिशों का कोई मौसम नहीं होता साहब ,

ये तो उम्र के साथ- साथ पनपती है और

उम्र के साथ ही खत्म हो जाती है


कुछ पूरी हो जाती है और कुछ दफन हो जाती है

लिखना तो और भी बहुत कुछ चाहता था पर लिख नहीं पाया,

मेरी जिन्दगी का ये कागज भी खाली रह गया।


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