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AMAN SINHA

Tragedy Action Inspirational

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AMAN SINHA

Tragedy Action Inspirational

अधूरा ख्वाब

अधूरा ख्वाब

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ख्वाब देखे जो भी मैंने सब अधूरे रह गए

मिटटी के बर्तन थे कच्चे आंसुओं संग बाह गए

रेत की दीवार थी और दलदली सी छत रही

मौज़ो के टकराव से वो अंत तक लड़ती रही


साल सोलह कर लिए जो पुरे अपने उम्र के

कैद में घिरने लगी मैं बिन किये एक जुर्म के

स्कूल का थैला भी मेरा कोने में था दब गया

सांस लेती किताबों पर भी धूल सा एक जम गया

 

शौक दिल में आ बसा था “लॉ” की पढ़ाई का

चल पड़ी थी थाम के मैं अस्त्र उस लड़ाई का

दो दिनों भी चल सका ना क्रोध मेरे भाई का

संगी था जो मेरा और मेरे इस लड़ाई का


चूल्हा और चौकी में मे रावक़्त यूं चलता गया

घर की पहरेदारी के आगे दम मेरा घुटता गया

वक़्त जो सिर्फ मेरा था वो अपनो में बांटता गया

उम्र का बड़ा सा हिस्सा बस आस में काटता गया


एक अधूरी चाह बनके ग़म मेरा बढ़ता गया

हौसला जो साथ में था वो भी तब खोता गया

शौक जो कभी था मेरा बस शौक बनकर रह गया

बच्चों से मिलि नसीहत तो होश मुझको आ गया

 

बस हुआ बहुत अब आज मैंने फैसला ये कर लिया

ज़िम्मेदारी की टोकडी को बस किनारे धर दिया

आज से खुद के ही खातिर सिर्फजीना है मुझे

बस किताबों का ही दामन अब पकड़ना है


बोलते जो बोलने दो और उनको क्या काम है

काम जिसने कर लिया उसी का होता नाम है

मैं ना ठहरूंगी के जब तक लक्ष्य को ना पाऊँगी

“लॉ” की पढ़ाई करके सबको आइना दिखाउंगी।


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