अधीर क्यों हैं आप...???
अधीर क्यों हैं आप...???
राजू भैया, आप जब
सबसे मिलकर
अपने केशकर्तन कार्य में
लीन थे,
तब आपकी ज़िंदगी
मुस्कान से भरी थी...!
मगर आज आप
तनहाइयों में
अंतर्द्वंद्व से
रुबरु होकर
बेबस
अपना वक्त
बिता रहे हैं...।
राजू भैया, आप कब तक
इस स्वार्थ भरी भीड़ में
तनहाइयों से
लड़ते फिरेंगे...?
अब अपने अपनों के
दिल में पुनः
जगह बना लीजिए...
आपकी बेहतर ज़िंदगी की
शुरुआत तभी होगी...!!!
क्या हासिल होगा आखिर
'अपना
-पराया', बेमतलब
हिसाब-किताब, मुनाफा-नुकसान की
मोहपाश में बंदी होकर
अपनों से लड़ाई करने से...??
ये शरीर जब तक
सलामत है,
तब तक ही
ये ताम-झाम : खेल-तमाशा...
फिर किसी दिन
इस महफिल-ए-आलम से
हर किसी को
(न चाहते हुए भी)
अलविदा कहना पड़ेगा...!
फिर क्यों ये अंधायुद्ध...?
कैसी ये बेरुखी...?
क्या हासिल होगा आखिर
खुद को नाखुश रखने से...??
उठिए !!! जागिए !!!
और अपने
सही लक्ष्य प्राप्ति हेतु
कर्मयोगी बनिए...