दर्द!
दर्द!
दर्द दौलत के चाह की, देती नहीं सुकूं,
दर्द मोहब्बत की, जहन्नुम की ओर देखूँ।
दर्द दुखों के पहाड़ की, कैसे बारिश से बच लूँ,
दर्द भूख की, कहाँ खाली पेट को भर लूँ ।
दर्द मुस्कराहट की, दबाने से ना दबे,
दर्द आँखों की, छिपाने से भी ना छिपे ।
दर्द सपनों के मिलन की, जो पास आ के दूर हो जाए,
दर्द जज्बातों की, जो हाले दिल ना बयां कर पाए।
दर्द धर्म के आस्था की, जिसपर हो खून की होली,
दर्द सच्चे कर्म की, जिसकी लगती नहीं कभी बोली।
दर्द विधवाओं की, जिसे ज़माने के ताने हैं सताते,
दर्द इंसानियत की, जो पत्थर दिल में ही खो जाते।
दोस्तों, दर्द में ना जाने छिपी हैं ना जाने कितनी आहें,
लाख कोशिश कर लो, ना छोड़ पाओगे इनकी बाँहें ।
