"सुख-सुविधावाले लोग"
"सुख-सुविधावाले लोग"
सुख-सुविधा में जो भी लोग पलते है।
वो लोग भला कब यहां पर खिलते है।।
वो ही लोग पौधे यहां पर वृक्ष बनते है।।
जो धूप, वर्षा, सर्दी सब कुछ ही सहते है।।
जो समस्याओं से यहां पर पर्दा करते है।
उन्हें दुनिया वाले नित ही रुलाया करते है।।
जो यहां पर युद्ध से पहले हार मानते है।
इतिहास में उन्हें कायर मनुष्य बोलते है।।
जो लोग हर गम से जिंदादिली से लड़ते है।
गम उनकी मुस्कान के आगे कब टिकते है।।
उन्हें दुनिया वाले हर पल ही सजदा करते है।
जो लोग यहां पर खुद्दारी से जिया करते है।।
वो आदमी यहां पर कामयाबी से मिलते है।
जो अपने कर्म को ही ईश्वर माना करते है।।
वो पौधे धरा सीना फाड़ बाहर निकलते है।
जो अंत: अंतर्द्वंद्व पर विजय प्राप्त करते है।।
जो खैरात में कामयाबी को प्राप्त करते है।
वो शख्स जीतकर भी हार जाया करते है।।
जो भी मेहनत कर, शूलों को फूल करते है।
वो ही जग दलदल में कमल बन खिलते है।।
जो सुविधाएं छोड़, संघर्ष-आग में जलते है।
वो लोग कुंदन बनकर यहां पर दमकते है।।