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Brijlala Rohan

Tragedy

4.0  

Brijlala Rohan

Tragedy

अब सच कहना इतना आसान तो नहीं रहा

अब सच कहना इतना आसान तो नहीं रहा

1 min
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अब सच में ! सच कहना इतना आसान तो नहीं रहा !

तो भला सच कहने की नौबत कौन अपने सर उठाये ?

कौन पड़े सच कहने की मुसीबत में ?

सच का नाम सुनते ही ज़माना मूक हो जाता है !

और ज़माने के लोग बहरे !

गर गलती से मुख से सच निकल भी जाये और कानों में पड़ भी जाये !

तो क्या दुनिया सच में ही सच को पचा पायेगी भी ?

इस सच में भी संशय है !

इसलिए दुनिया एक सच को भी मिर्च- मसाले के साथ चटपटा बनाकर बनाकर लोगों के सामने पेश कर देती है ।

सुनकर चखने में इसका स्वाद तो बहुत ही सुमधुर होता है ।

लेकिन अंदर- ही- अंदर हमारी सेहत को सोखकर खोखला कर रहा होता है ।

ज़माने के इस रवैये को देखकर सच में ये बात ज़ेहन में घर कर गई है कि -

अब सच में ! सच को कहना इतना आसान तो नहीं रहा !

मगर सच के सिवा बचा ही क्या कुछ जो कहा जा सकता है ?

क्योंकि झूठ तो कुछ होता ही नहीं ! 

सिवाय सच के ।

चूँकि झूठ भी तो एक सच ही है ।

हाँ ! ये सच ही तो है ।

एक मनगढ़ंत सच , जो छलावे से प्रेरित काल्पनिक सच है ।

जिससे दाँव साधने की बदबू आती है ।



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