अब पराई हूँ मैं
अब पराई हूँ मैं
जब मैं हंसती थी तो गुलाब महकते थे।
रोती थी तो ओस की बूँदे चमकती थी।
गुस्सा करती तो सारी दुनिया मेरी मुठ्ठी मैं थी।
बोली तो कोयल सी सुरीली लगती।
मेरी शरारतों से घर का हर कोना गुलजार था।
लेकिन अब जब हंसती हूँ,
तो सर्द चेहरा नजर आता है।
गुस्सा करती हूँ तो,
दयनीय हालत नजर आती है।
मेरी हर ख्वाहिश अधूरी रहजाती है।
रोती हूँ तो आँसू चुपचाप पीने की
सलाह दी जाती है।
बेटी तब भी थी, बेटी आज भी हूँ।
फर्क सिर्फ इतना है, तब छोटी थी
आज ब्याह कर पराई कर दी गई बहू हूँ।
