अब जाने क्या होना है।
अब जाने क्या होना है।
खूब करी जब मनमानी,
अब काहे का रोना है।
जीवन सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।
दबे पाँव बिन आहट के,
तांडव करती मौत खड़ी।
कोई आहट सुन न सका,
टूट रही है साँस कड़ी।
थोड़ी की लापरवाही,
फिर जीवन को खोना है।
जीवन सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।
खूब करी जब मनमानी,
अब काहे का रोना है।।
बंद घरों में बैठे अब,
देखो सब लाचार हुए।
दर नाच रहा काल खड़ा,
सभी हाल बेहाल हुए।
कैसी कठिन घड़ी आई,
अब जाने क्या होना है।
खूब करी जब मनमानी,
अब काहे का रोना है।
जीवन सबका लील रहा,
जग फैला कोरोना है।।
