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Kunda Shamkuwar

Others Abstract Drama

4.8  

Kunda Shamkuwar

Others Abstract Drama

आज़ादी

आज़ादी

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घर में रहनेवाली औरतें तुम अपने काम पर ध्यान दो....

खाना बनाने वाला काम...

बच्चों की देखभाल वाला काम.....

घर की सफ़ाई और कपड़ों की सिलाई के काम...

चार किताबें पढ़कर तुम हमारी बराबरी का ख़्वाब देखने लगी हो?


तुम औरतें सदियों से आज़ादी आज़ादी कहती जा रही है...

समझ नहीं आता की तुम इस आज़ादी का करोगी क्या?

क्या ज़रूरत है तुम्हें इस आज़ादी की?

तुम्हारी यह नाजायज़ बात हम कैसे माने भला?

क्यों मानेंगे भला?


क्योंकि हम तुम्हारी ज़रूरियात का पूरा ध्यान रख रहे है.....

तुम्हें

दो वक़्त की रोटी भी दे रहे है.....

कपड़े लत्तों का भी ध्यान रख रहे है!

और क्या चाहिये तुम्हें?


तुम ये आज़ादी आज़ादी की रट लगाना बंद कर दो....

तुमने कभी वोट का अधिकार मॉंगा था.....

क्या राजनीति की दलदल साफ़ कर पायी तुम लोग?

तुमने सदियों पहले डॉक्टर बनने के लिए संघर्ष किया था.....

क्या भ्रूण हत्या रुक गयी?

क्या तुम निर्भया को भूल गयी हो जो आज़ादी की रट लगा रखी है?

तुम ये आज़ादी की बात छोड़ दो.....

घर में रहो.....

घर की ही बात करो....

दुनिया चलाने के लिए हम जो है....


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