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Lakshman Jha

Tragedy

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Lakshman Jha

Tragedy

आतंक का साया सीमा पार से

आतंक का साया सीमा पार से

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आखिर मनाए हम कैसे जश्न

नव वर्ष का ?

रंग गयी धरती हमारी

मानवता के खून से,

संहार ही संहार

फैला है चहुँ दिश

आतंक के साये में

हम सब जी रहे हैं !

बच्चे अपना आज

बचपन खो रहे हैं,

क़त्ल का है जश्न

खूनी असुर

बनते जा रहे हैं !

भाग्य भी है बाम

विपदा बढ़ रही है,

दुर्घटनायें भी शिकंजा

कस रही है,

संकल्प

यदि हम कर सके

रोक लें यदि ठान के

तब मनायेंगे हम सब

जश्न

"नववर्ष "शान से !!!!


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