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Lakshman Jha

Drama

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Lakshman Jha

Drama

आत्मीयता

आत्मीयता

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नए जमानों के साथ

हमें चलना होगा !

कदम आखिर हमको

मिलाना होगा !


समाज सीमित परिधिओं

में नहीं रहा !

हमारा दिन-प्रतिदिनों का

दायरा बढ़ता रहा !


निमंत्रण पत्र को दरवाजे पर

फ़ेंक देते हैं !

ईमेल, व्हात्सप और मैसेस

भेज देते हैं !


प्रीति-भोज का जमाना है

अब कहाँ ?

प्रेम से सबको खिलाना

अब कहाँ ?


अब तो बुफे सिस्टम का

युग आ गया !

लंगर सिस्टम ही

सबको यूँ भा गया !


इस दौर में लगता है

सब कुछ पा लिया !

हमने भी प्रतिष्ठा के गगन

को छू लिया !


आत्मीयता का बोध

होना ही प्रबल है !

कीचड़ के मध्य ही

खिलता कमल है।।


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