आत्महत्या
आत्महत्या
कोई लेट गया था,
रेल की पटरी पर,
किसी की लाश,
पंखे से झूल रही थी,
किसी ने खा ली थी,
नींद की अनगिनत गोलियां
और कोई--
कूद गया/गई थी,
बारहवीं ,चौदहवीं मंजिल से,
समाप्त कर अपनी जीवन लीला,
और एक बच्चा/बच्ची,
बड़ा हो रहा/रही थी,
चारों तरफ से सीखती/सीखता हुआ,
शाबाश-----
हर छोटे बड़े काम पर तालियां,
और घुटनों चलते हुए,
घुटने सीधे हुए,
रीढ़ हुई सीधी,
आत्मविश्वास से भरपूर,
खुद को जीते पाया,
आत्महत्या?
पर क्यों, सवाल था,
रुपया, पैसा, पत्नी ,बच्चे,
सब कुछ तो पास था,
पर विवश था,
आत्महत्या पर,
पुरातन तरीकों से नहीं,
रोज ही अपने मन के,
एक छोटे से हिस्से को,
मार रहा था,
और आत्महत्या को विवश करने वाले,
हत्यारे----
खुले आम घूम रहे थे, आश्चर्य!!
जो बचपन में हर बात पर,
तालियां बजाते थे,
वाह-वाह कर जाते थे,
एक इंसान को गढ़ जाते थे,
वो?? और हत्यारे??
अपने ही बताए रास्तों को,
नकार रहे थे,
नियम और कानून के,
नए दायरों में बांध रहे थे,
मां-बाप, पत्नी और बच्चे,
सब ही तो सहयोगी थे,
उनकी इच्छाओं में,
खुद को ढालता जाता था,
घूंट-घूंट, आत्महत्या किये जाता था,
तनाव ग्रस्त था,
खुद के ही विचारों से त्रस्त था,
मार देता था,
मन में उठती भावनाओं को,
अब हर इंसान खुश था,
हर हत्यारा खुश था,
आत्महत्या हो रही थी,
और कोई जीवित----
सामने था।
