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Prabhanshu Kumar

Drama

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Prabhanshu Kumar

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आस्था का महाकुंभ

आस्था का महाकुंभ

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कुश कास तम्बू कनात

रामनामी मुण्डन तर्पण

स्नान ध्यान अनुष्ठान गोदान

झण्डे पताके मान मनौती

और मनोरथ से भरा है कुंभ।


गंगा यमुना के

पावन संगम में

छलक आया है अमृत

जिसे पाने के लिए

बढ़े चले आ रहे हैं,


साधु संत, योगी, संन्यासी, ज्ञानी, वैरागी

ध्यानी, स्नानार्थी, मोक्षाथी

अर्द्धय अस्तवन जारी है

भीग गया है कुंभ मेले का वातावरण,


मंञोचार पूजा पाठ यज्ञ होम अगियार

और शंखध्वनि से

अध्यात्मिक सुगन्घित फैली है चारों ओर

प्रयाग का ठाठ निराला है।


हर कोई कुंभमय है

सब मुक्त हो जाना चाहते हैं

शाप पाप से

गंगे तव दर्शनार्थ मुक्ति।


हिमालय कन्याकुमारी नजदीक आ गए हैं

सिमट गई है सात समुंदर पार दूरी

रेत पर आस्था के अंकुर फूट रहे हैं

अलौकिक आनंद है चेहरों पर।


वह कौन सा सम्मोहन है

जो सबको यहां खींच लाया है

बिना किसी निमंत्रण के

भविष्य में भी पीढ़ी दर पीढ़ी

जुटते रहेंगे लोग यहां

आस्था और विश्वास से।


इनसेट और वेबसाइट के युग में भी

कम नहीं हुई है

आस्था की तेज धार

यही तो अपना भारत है।।


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