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Prabhanshu Kumar

Others

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Prabhanshu Kumar

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मेरा दूसरा आदमी

मेरा दूसरा आदमी

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मेरे अंदर का दूसरा आदमी

मेरा दूसरा रुप है

वर्तमान परिदृश्य

का सच्चा स्वरूप है

जिस समय मैं

रात में सो रहा होता हूं

उसी समय मेरे अंदर का दूसरा आदमी

अस्पताल के आईसीयू के बाहर

ईश्वर से विनती

कर रहा होता है।

जब मैं रोटी के टुकड़े

खा रहा होता हूं

तो मेरा दूसरा आदमी

किसी रेस्टोरेंट में

बिरयानी के स्वाद में

तल्लीन हो रहा होता है।

जब मैं मॉ की दवाई

खरीद रहा होता हूं

तो मेरे अंदर का दूसरा आदमी

अपनी प्रेमिका को

लेटर लिख रहा होता है।

और जब मैं

अपने विचारों के

आकाशगंगा में गोता

लगा रहा होता हूं

तो मेरे अंदर का दूसरा आदमी

टेलीविजन पर रिमोट की

बटन बदल रहा होता है।।

मैं और मेरा दूसरा आदमी

दो नहीं एक है

बस विचारों से अनेक है।।

                               



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