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Prabhanshu Kumar

Others

4.8  

Prabhanshu Kumar

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जिन्दगी के अंतिम क्षण--

जिन्दगी के अंतिम क्षण--

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शहर के नामी

अस्पताल के

वी आई पी कमरे,

के बेड पर, 

अनेक आधुनिक,

मशीनों से, 

घिरा मैं घड़ी की 

सुइयों को,

ताकता हुआ,

गिन रहा हूँ, 

अपने जीवन के, 

अंतिम पल, 

टिक टिक की आवाज, 

साफ गूँज रही है, 

मेरे कानों में, 

डाक्टर नर्स भी, 

दवा देकर, 

थक कर जा चुके हैं मुझे, 

शायद दवाइयों की परिधि, 

पार कर चुका है, 

मेरा जीवन, 

चिकित्सकीय विज्ञान भी, 

बेबस असहाय हाथ जोड़े,

सब कुछ परमात्मा को थमा, 

खड़ा है एक कोने में, 

शून्य हो रहा है मेरा शरीर, 

सुइयों की चुभन का, 

एहसास भी नहीं कर पा रहा मैं, 

चाह कर भी नहीं,

हिला पा रहा अपने पैर, 

आँखें धुंधला रहीं हैं, 

यूँ लग रहा है , 

स्वयं में ही खोता,

जा रहा हूँ मैं , 

लग रहा है कि,

समाप्त होता ,

जा रहा हूँ मैं।

जीवन के इन,

अंतिम पलों में,

मेरी आँखें ढूँढ रहीं हैं,

हर उस अपने को, 

जो पास बैठ,

मेरा हाथ थाम,

कर सके कुछ बातें, 

दे सके मुझे सांत्वना, 

सहला सके मेरा माथा ,

जिनके आँखों से छलकते,

आँसू में दिख सके, 

मुझे वो प्यार, 

जो जीवन के ,

हर दर्द सहने की, 

मुझे शक्ति दे सके, 

हाँ उन्हीं अपनों को, 

तलाश रही हैं मेरी आँखें,

जिनके लिए मेरे पास,

सम्पूर्ण जीवन ,

समय ही न था।

समय ही न था।

समय ही न था।   

              

                           


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