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Arti Tiwari

Romance

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Arti Tiwari

Romance

आषाढ़ के आखिरी दिन

आषाढ़ के आखिरी दिन

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 बादलों की अठखेलियाँ तरसाती लगे हैं 

 बार बार बादलों को धकिया के

आसमान की छाती पे मूँग दलती धूप

मुँह चिढ़ाती सी लगे है

बूँदों की प्रतीक्षा का अंतिम दिन

नखलिस्तान सा लगे है

मैं एक तितली के पंखों से बनी छतरी हूँ

रंग हैं रेशमी एहसास भी

बार बार बाहर झाँकती हूँ 

बादलों की आस में

पर बूंदों के हुस्न का स्पर्श नहीं कर पाती

जबसे एक स्त्री के लिए आई हूँ

नई नकोर ही रखी हूँ

टकटकी लगाकर तलाश रही हूँ

अपने नाम की बारिश

ये आषाढ़ भी मुझे

अनछुए ही चला जायेगा क्या?


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