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JAI GARG

Romance

4  

JAI GARG

Romance

आसक्ति (log 12)

आसक्ति (log 12)

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ख़्याल प्यार का जो आया 

आँखें ख़ुद ही बंद हो गई

ढूंढ़ते रहे जब उनका अक्स

अठखेलियाँ वो करने लगे,


उठते भँवर में घुलती सुगंध 

का, हमे फिर एहसास हुआ

कुरेद कर रख दिया उसने

नासूर-ए-ज़ख़्म दिल मे हमारे,


तमन्नाएँ तो बहुत थी कहने को

आज़माइश हमारे मन मे रह गई,

बेदर्द कहना था पर ज़ुबान पर

उनका ही नाम निकला !


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