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आफ़ताब आफ़ताब रहे

आफ़ताब आफ़ताब रहे

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बुझ गया हूँ ताब बाक़ी तो नहीं अब,

मुझे छूने से पहले फिर भी अहतियात रहे,

ज़माना कुछ भी नाम दे मुझे,

तेरी नज़र में आफ़ताब आफ़ताब रहे !


दीन मिट गया जब मोहब्बत की रसमों के लिये,

अब जो क़लमा बचा है, बचा तो रहे !


दिल को तोड़कर पैमाना बना लिया लेकिन,

तेरी नज़र रहे या इसमें फिर शराब रहे,


मौत आने से क्या बदल जायेगा पूछो,

ये आज हम हैं कल को हम ही न रहे !


किताब लिखी उसने इंसानियत मगर,

सजा उसे दी जो हक़ के पैरोकार रहे,


जुस्तजू करके नाकाम बढ़ गया कहाँ जाने,

बाज़ार वहीं रहे, ख़रीदार रहे !


क्यों इतना सजदे में गिर गये हो होश करो,

मोहब्बत हे मगर, थोड़ी तो बेवफ़ाई रहे,


ग़ज़ल को इतना न सर चढ़ाओ जावेद,

हऱफ़ छोटे ही सही, ज़रा जगह तो रहे !


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