आफत की बारिश
आफत की बारिश
इन्द्र देव इस बार कुछ, ज्यादा ही नाराज़ लग रहे हैं,
मुसीबत शायद देवलोक में है, जमीन पर बरस रहे हैं।
कहीं पे सूखा पड़ा हुआ है, कहीं पे कहर बरपा रहे हैं,
ना जाने अपनी हरकतों से, बाज क्यों नहीं आ रहे हैं।
कहीं कहीं पे सीमित जगह में, मूसलाधार बरस रहे हैं
और कई जगह बस, गरज कर ही पलायन कर रहे हैं |
रेल, रास्ते, राशन, बिजली, सब पानी में डूब गये हैं
पानी के तेज बहाव से, शहरों के नक्शे बदल गये हैं |
भगवान् भंवर में है, इंसान पानी-स्थान में डूब रहे है
आफत की बारिश में बेजुबाँ, परिवार से बिछुड़ रहे है |
कहीं बाढ़ और कहीं भूस्खलन, कैसी दहशत फैलाई है
चारों तरफ पानी पानी, हर तरफ तबाही ही तबाही है।
जाने बारिश का दिमाग क्यों, इतना खराब हो गया है,
जो अपने आवेश में सबकुछ, ख़त्म करने पर अड़ी है।
बारिश की आहट से वनस्पति के, चेहरे खिल जाते हैं,
पर आज उसे भी अपना, अस्तित्व बचाने की पड़ी है।
क्या पता इंद्र देव को इस बार, कौन-सा डर सताया है,
हम भी मजबूर हैं, फिर से एक बार कान्हा बुलाया है।