आपदा
आपदा
होठों की मुस्कुरहटें ना जाने कहां खो गई,
रातों रात में ये कैसी आपदा आ गई,
किसी ने कहा बरसात का पानी स्केल को पार कर गया,
ना जाने कब शहर पानी में डूब गया,
कई राज्य आज बाड़ का शिकार है,
देखो चारो ओर मचा ये कैसा हाहाकार है,
किसी ने बरसों की पूंजी को गंवा दिया,
किसी ने बाड़ में अपना घर गंवा दिया,
बूढ़ी मां ने अपना सहारा खो दिया,
यूँ पल भर में ज़िन्दगी के रुख बदल गए,
ना जाने कितने लोग अपनो से बिछड़ गए,
मकान दुकान सब पानी में बह गए,
किसान के खेत उसके बछड़े गाय सब पानी में बह गए,
इन काली रातों की सुबह जल्द होगी,
नई शुरुआत एक बार फिर होगी,
कोई कहता है भगवान की नाराजगी के कारण बाड़ अाई,
ऐसा है तो क्यों निर्दोषों की जान गई,
इंसान ने कभी प्रकृति को सम्मान नहीं दिया,
क्यों कभी प्रकृति के घावों की ओर ध्यान नहीं दिया,
धरती का ताप आज असंतुलित हुआ,
देखो सारा शहर आपदा का शिकार हुआ,
ज़रा इंसान बनो,
प्रकृति का सम्मान करो,
जीवन दान देती उस कुदरत ने आज कितनी जाने ले ली,
कितनी ज़िन्दगी आज एक मोड़ पर सूनी हो गई,
कोई ठिकाना तलाश रहा है,
कोई आस की सुबह तलाश रहा है,
कोई चीख कर बोल रहा है आप बीती,
कोई खामोशी से सह रहा है आप बीती,
उस छोटे बच्चे को उम्मीद दिखी,
वो बोला देखो मा बारिश रुकी धूप खिली,
ये उजड़े हालात संवर जाएंगे,
जो टूटे है सपने वो फिर जुड़ जाएंगे,
वो हालात से हार गया,
आज वो सच में टूट गया,
बाढ़ भूकंप ना जाने कब थामेंगे,
ना जाने कब वापस होठ हँसेंगे।