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manoj jagetia

Tragedy

3.4  

manoj jagetia

Tragedy

महल छोड़ देते हैं

महल छोड़ देते हैं

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किसी और के सहारे कैसे

जिंदगी चलाए कोई

जब अपने ही अपनों का

साथ छोड़ देते हैं


हाथ पकड़कर कर

चलाया था जिनको वे

बीच मझधार में ही

हाथ छोड़ देते हैं


कंधों पर उठा के जिन्हें

खुश हुआ करते थे

हमको समझ आज

बोझ छोड़ देते हैं


 मिन्नतें की थी दर-दर

 पर जाके वो

 भटकने को आज

 दर-दर छोड़ देते हैं


दिन और रात

सुबह शाम जिनके लिए थे

अभी समय नहीं कहकर 

मुँह मोड़ लेते हैं


जिन पर लुटाते रहे

तन मन धन सब

आज पाई पाई का

हिसाब जोड़ लेते हैं

 

आंखों में ना शर्म

 ना ही बोलने की सुध रही

 बरसों जो पाला था

 भरम तोड़ देते हैं

  

फिर भी निकलती है

दुआएं ही दिल से

 कि खुश रहो तुम

हम ये घर छोड़ देते हैं

 जिसमें जीवन गुजारा

वह दर छोड़ देते हैं


 तिनका तिनका जोड़ के

 बनाया जो आशियाना

 आज उस पर अपना

 हक छोड़ देते हैं


 खुद जो बसाया था

महल छोड़ देते हैं


 पर किसी और के सहारे

 कैसे जिंदगी चलाएं कोई

 जब अपने ही अपनों का

 साथ छोड़ देते हैं।


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