राह का दर्द
राह का दर्द
मैं गवाह हूँ इस राह से जाने वालों का
दर्द का तपिश का
और पैरों के छालों का
वो पथराई आंखे जब मेरी ओर देखती हैं
तब सिमट जाने का मन करता है।
मैं बनी जरुर हूँ
कंकड पत्थर और सीमेंट से
मगर मैं उनसे ज्यादा मजबूत नहीं हूँ
जो मीलों मील मुझ पर चले हैं
बिना रुके बिना थके,
वो भूख प्यास सब छोड़ आए हैं
बस एक दर्द साथ लिए आए हैं
मैं बेबस हूँ सब देख रहा हूँ
उनके सफर का मूक साक्षी बन रहा हूँ,
हे ईश्वर मुझे हिम्मत दे,
मैं अभागा इनके दर्द का कारण हूँ
मैं क्यों घट नही जाता..
क्यों सीधा इनके गांव तक नहीं जाता
आज अपने पत्थर होने का अफसोस है
काश ! ये राही रुक जायें
और मैं चल पडूँ
पहुचा दूं इन्हे इनके गन्तव्य पर
और बन जाउँ राह से इनका हमदर्द इनका हमराह।