शहीद के अन्तिम शब्द
शहीद के अन्तिम शब्द
यादकर माँ मुझको दरवाजे को तकती होगी
आने वाली हर गाड़ी उम्मीद बढाती होगी
अफसोस यही है मुझको उस माँ की गोद सूनी कर जाऊंगा
सफर आखिरी है मेरा मैं लौट के घर न आऊंगा !
थक गये है बाबा के कंधे वो सहारा ढ़ूढ रहे होंगे
दिलासा देकर सबको वो चुपचाप रो रहे होंगे
सोच रहे होंगे वापस आ हाथ बटाऊंगा
अफसोस यही है मुझको अब बुढ़ापे की लाठी ना बन पाऊंगा
टूट रही है सांसे अब लौट के घर ना आऊंगा !
वह चुलबुली सी मेरी बहना शोर मचाती होगी
घर आएंगे भैया सबको बताती होगी
अफसोस यही है मुझको राखी सूनी कर जाऊंगा
अब इस रक्षाबंधन पर मैं लौट के घर ना आऊंगा।
याद करके मुझको सिंदूर लगाती होगी
चूड़ी की खनखन सुन हर बार मुस्कुराती होगी
अफसोस यही है मुझको श्रंगार साथ ले जाऊंगा
पोंछ लेना सिंदूर अपना मैं लौट के घर ना आऊंगा।
ए मेरे बचपन के यारो महफिल मेरे बिना सजाना
खत्म हो जाएगा होली पर सब का मिलना और मिलाना
अब राहें मत तकना गलियां सूनी कर जाऊंगा
अफसोस यही है मुझको अब तुम्हें हँसा न पाऊँगा !
मिला था जीवन भारत माँ का कर्ज चुकाने को
रह गया अधूरा वादा मेरा ले जन्म दोबारा आऊंगा
गर्व करना मुझ पर
मृतक नहीं मैं शहीद कहलाउंगा।
