कोख की पुकार
कोख की पुकार
माँ मैं सुन पा रही हूं तुमको
तुम भी महसूस करती होगी मुझको
माँ तुमसे जल्दी मिलना है,
तुम्हारी गोद में कली की तरह खिलना है
पापा की ऊँगली पकड़ बाबा के कंधे चढ़ना है
दादी के लाड़ को
भैय्या से भी लड़ना है
माँ तुम आज रोती क्यों हो
आज अचानक धीरज खोती क्यों हो?
पापा के माथे पर चिंता ,
क्यों दादी के मुंह पर गाली है
बाबा क्यों कह रहे है अभागिन आने वाली है
माँ आज अंधेरे गहरे क्यों हैं
ये सबके चेहरे दानव जैसे क्यों हैं?
माँ सुनो न!
मै किसी को दुख नहीं दूँगी
तुम्हारी आंखो के आसूँ अपनी आंखों मे लूंगी,
माँ आज मुझे बचा लो कोख में कहीं छिपा लो
मुझे भी जीना है...इस अंधेरे से बचा लो
माँ चीख रही हूं मैं दर्द हो रहा है मुझे,
तुम्हारा ही हिस्सा हूं माँ इस तरह शरीर से मत निकलो
थोड़ी हिम्मत तो करो माँ...मुझे बचा लो माँ मुझे बचा लो!!