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Akhtar Ali Shah

Tragedy

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Akhtar Ali Shah

Tragedy

लॉक डाउन में सडकें

लॉक डाउन में सडकें

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कहीं गरीबों के पिटने पर,

शर्मसार दुख पाती सड़कें।

और कहीं रोती है देखो ,

सूने पन को खाती सड़कें ।।


निर्जन वन सी उदासीनता,

को अपनी छाती पर ओढ़े,

रिक्त पड़ी है दूर दूर तक ,

अपना बोझ उठाती सड़कें ।।


दायित्वों का बोझ नहीं पर,

बिना काम आराम न भाए।

तरस रही है चहलपहल को,

मायूसी बरसाती सड़कें ।।


बीच सड़क पर खाकी वर्दी,

मास्क लगाए खड़ी हुई है ।

कहीं हादसा हुआ हो जैसे ,

सहमी हैं जजबाती सड़कें।। 


कोरोना के डर के कारण ,

बंद हुए सब उत्पादन घर ।

घर जाने को मजदूरों की,

भीड़ देख अकुलाती सड़कें।।


कहीं रक्त से मजदूरों की,

बेसुध है सुनसान पटरियां।

कहीं देख अन्याय गरीबों ,

पर,रोती चिल्लाती सड़कें ।।


सबको ही समान संरक्षण,

देने वाली बेकल हैं पर ।

राजनीति में उलझ गई हैं,

क्या करती गुर्राती सड़कें।।


लॉक डाउन हुआ है जब से ,

खुशहाली से वंचित होकर ।

बिलख रही है शहर शहर में,

जो थी धूम मचाती सड़कें ।।


जंगल जंगल आज अकेली ,

घूम रही विक्षिप्त बनी सी।

कांधों पर जो भीड़ उठाए ,

रहती हंसती सड़कें ।।


"अनन्त" सोशल डिस्टेंसिंग के,

मंजर भी अब देख रही हैं।

गले मिलाकर जो खुश होती,

प्यार सतत फैलाती सड़कें ।।



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