लॉक डाउन में सडकें
लॉक डाउन में सडकें
कहीं गरीबों के पिटने पर,
शर्मसार दुख पाती सड़कें।
और कहीं रोती है देखो ,
सूने पन को खाती सड़कें ।।
निर्जन वन सी उदासीनता,
को अपनी छाती पर ओढ़े,
रिक्त पड़ी है दूर दूर तक ,
अपना बोझ उठाती सड़कें ।।
दायित्वों का बोझ नहीं पर,
बिना काम आराम न भाए।
तरस रही है चहलपहल को,
मायूसी बरसाती सड़कें ।।
बीच सड़क पर खाकी वर्दी,
मास्क लगाए खड़ी हुई है ।
कहीं हादसा हुआ हो जैसे ,
सहमी हैं जजबाती सड़कें।।
कोरोना के डर के कारण ,
बंद हुए सब उत्पादन घर ।
घर जाने को मजदूरों की,
भीड़ देख अकुलाती सड़कें।।
कहीं रक्त से मजदूरों की,
बेसुध है सुनसान पटरियां।
कहीं देख अन्याय गरीबों ,
पर,रोती चिल्लाती सड़कें ।।
सबको ही समान संरक्षण,
देने वाली बेकल हैं पर ।
राजनीति में उलझ गई हैं,
क्या करती गुर्राती सड़कें।।
लॉक डाउन हुआ है जब से ,
खुशहाली से वंचित होकर ।
बिलख रही है शहर शहर में,
जो थी धूम मचाती सड़कें ।।
जंगल जंगल आज अकेली ,
घूम रही विक्षिप्त बनी सी।
कांधों पर जो भीड़ उठाए ,
रहती हंसती सड़कें ।।
"अनन्त" सोशल डिस्टेंसिंग के,
मंजर भी अब देख रही हैं।
गले मिलाकर जो खुश होती,
प्यार सतत फैलाती सड़कें ।।
