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Goldi Mishra

Others

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Goldi Mishra

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जलसैलाब

जलसैलाब

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हाहाकार फैला चारो ओर ये कैसा,

जलमग्न है शहर सारा,

चुप है प्रशासन,

कुछ क्यों नही कहता शासन,

उफान में व्यास है,

बेकाबू हो रहा रावी और ब्रह्मपुत्र प्रवाह है,

क्षण भर में सारा शहर जल में समा गया,

किसी की छत बह गई तो कोई अपनो से बिछड़ गया,

बिस्तर की गठरी बंधे खड़े है चौराहे,

इंतज़ार में है जल सैलाब कब छटे,

टूट गई है वो दुकान जो रोज़ी थी,

एक वही तो बस मेरे जीवन की पूंजी थी,

किनारे पर था मेरा छोटा बसेरा,

अब वो बसेरा रावी की लहरों में था,

रूष्ट है ईश्वर हमसे शायद,

ये सैलाब सब छीन लेगा शायद,

जहां गूंज उठते थे भजन,

वो मंदिर भी है जलमग्न,

ना रोटी की खबर,

ना कल के सवेरे की खबर,

क्या होगा क्या करे,

जल स्तर ना जाने कब थामे,

ये गरज बादल फटने की,

ये लग रही है शिकायत सी,

आधुनिकता में मग्न प्राकृति को तार तार कर बैठे,

नदी पर्वत को दूषित कर हम ये कैसा पाप कर बैठें,

इस रात का धुंधला सा सवेरा है,

उम्मीद से बंधे है बस मन अंदर अंदर बिखरा है,

आसूं है आंखो में एक सैलाब मेरे अंदर मानो बहता है,

हाथ में कुछ नही बस प्रार्थना है,।।



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