Goldi Mishra

Inspirational

4  

Goldi Mishra

Inspirational

मुझ में मैं

मुझ में मैं

1 min
59


कब से,

मुझे याद भी नहीं कब से,

बस दुआ ही मांगी,

हकीकत हो जाए ख़्वाब बस यही दुआ है मांगी,

खुद से एक लड़ाई,

खुद से जीतने की ख्वाहिश खुद से ही मैं हारी,

क्यूं कब कैसे कुछ नही पता,

किस ओर मंजिल किस ओर है रास्ता,

मुझे एक डर हमेशा था,

किसी रास्ते पर खो कर मैं खुद से मिल जाता,

अकेलापन एक गहरा अंधेरा,

मुझ पर एक अजीब सा पहरा,

खुद को खुद समझाना,

रोज़ कुछ नया हासिल कर जाना,

मैं मुझ में ही बिखर सी गई,

सारी उम्मीद मानो रूठ सी गई,

मेरे साथ बस एक मेरा ही साथ था,

बस यही एक सच मेरे साथ था,

बेचैनी बेसब्री ये क्या होती है,

ख्वाबों की डोरी जब टूट जाती है,

अभी खुद को संभालना बस सीखा ही था,

पर लगा शायद अभी ये हुनर अधूरा था,

कभी खुद को निहारना,

दूजे पल फिर तिनका तिनका टूट जाना,

श्रृंगार सब तीज त्यौहार का आना,

आकर बस यूं ही चले जाना,

बेदाग इस जिस्म को हर रोज संवारना,

फिर लागे मानो ये सब था कुछ पल का फसाना।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational