STORYMIRROR

Lata Singhai

Tragedy

4  

Lata Singhai

Tragedy

आपदा

आपदा

1 min
375


आपदा @@@@


पहाड़ियों से अठखेलियाँ करता भानु , बादलों को छेड़ अपनी ही मस्ती में ,

अलखनंदा के साथ साथ चला जा रहा था ।


बादल भी उमड़ घुमड़ तेजी से भाग रहे थे। 

मानो भानु और बादलों में लुकाछिपी का खेल चल रहा था 

देवभूमि की आध्यत्मिक ,प्राकृतिक छटा देखती ही बन रही थी ।


प्रकृति आल्हादित कर रही थी

सब देवभूमि को नतमस्तक हो हम आगे बढ़ रहे थे ,

पहाड़ बादल नदियों से बतियाते हमसफ़र संग चल रहे थे ।



अचानक पहाड़ पिघलने लगे ,

प्

रकृति के कोप से डरने लगे ,

अकल्पनीय आपदा को खुली आँखों से देखने लगे ।



ज्ञान और विज्ञान में ,अब जंग छिड़ गयी ,

पर्यावरण से छेड़छाड़ ,प्रकृति को असहनीय कर गयी ।

प्रकृति और मानव में अब ठन गयी ,


जिंदगी थम गयी कुछ लाशो में तब्दील हो गयी ।

मंजर सिहर उठा ,काल के गाल में बहुत कुछ समा गया ,

देख वह दृश्य दिल दहल उठा ।


प्रकृति सीखा गयी ,आपदाओं के आना

जीवन का अंग है ,

पर गिर कर संभलना मानव का धर्म है,

आपदा को अवसर में बदलना ही हमारा कर्म है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy