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Dr. Anu Somayajula

Inspirational Tragedy

4.0  

Dr. Anu Somayajula

Inspirational Tragedy

आप ही टल जाएगा

आप ही टल जाएगा

1 min
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प्रिय डायरी,


सुनना ज़रा-

"मंदिर में घंट बाजे,

सुबह, दोपहर, शाम बाजे,

बिना रुके अविराम बाजे"

सारे बड़े छोटे मंदिरों ने

यूं तो दरवाज़े बंद कर दिए हैं

“अनिशचित काल के लिए”

फिर भी भगवान का भोग

नियमित लगता है

छप्पन न सही

एक आध पकवान तो बनता ही होगा।

पंडे- पुजारी भी

सपरिवार छकते ही होंगे।


हम आस्था वादी हैं,

हमारी आस्था ख़ूब भुनाई भी जा रही है।

हर मंदिर में होड़ सी लगी है

‘विशेष पूजा और हवन’ की

कोरोना से मुक्ति के लिए ???

“ऑनलाइन” के इस दौर में

दक्षिणा भी बिला नागा गल्ले में

(दानपेटी में)

पहुंच ही रही है।

तमाम दानी ये क्यों नहीं कहते

आप हवन न करो

अन्नदान करो।

मंदिरों के अधिष्ठाता, पुजारी

क्यों नहीं कहते

भगवान

कुछ दिन आप अपना भोग भूल जाओ,

अपने अनगिनत, निस्सहाय, निरुपाय

भक्तों के साथ-

बस दाल रोटी खाओ।


हमारा ईश्वर हमारे अंदर है,

हमारा भोग ही उसका भोग है,

फ़िर हम क्यों उस पर

मिथ्या आडंबर थोपें?

पेड़ के तने पर टंगी तस्वीर के सामने

भिखारी भी अगर गुड़ की भेली

रखता है

तो आसपास के बच्चों में बांट देता है।

क्यों नहीं हर मंदिर,

हर पूजा घर

अपने इलाके के त्रस्त जनों को

दो वक्त की रोटी का आश्वासन देता?

जन-जन में अपना भगवान ढूँढता??


तृप्त जनता-

पलायन ही न करे

तो कोरोना भी क्या करेगा!

खुद भूखे पेट-

बिना हवन, बिना पाठ के

आप ही टल जाएगा!!


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