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Vaidehi Singh

Classics

4.4  

Vaidehi Singh

Classics

आँसू बड़े बुरे हैं

आँसू बड़े बुरे हैं

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आँसू बड़े बुरे हैं, 

कुछ भी होने पर बहे हैं, 

कुछ ना होने पर ज्यादा गिरे हैं। 


लाख मना करने पर भी बूंदे बह ही जातीं हैं, 

छोटी सी होकर भी सब कुछ कह ही जातीं हैं। 

आँखें हृदय का आईना तो जुबान आँसू की बूंदें हैं। 

आँखों में कुछ पल की महमान आँसू की बूंदें हैं। 


फिर पलकों के पर्दों से बाहर गाल के आँगन में फिरे हैं, 

इसलिए आँसू बड़े बुरे हैं।

गालों पर चंद पलों की जिंदगी बिताते हैं, 

फिर वहाँ से भी चले जाते हैं। 


प्रेम का बगीचा अगर मुस्कान की धूप से खिला,

आँसुओं ने उसे सींचा है, 

भक्त के आँसुओं ने तो ईश्वर को भी खींचा है। 

मोती जैसे आँसू ही दुल्हन की आँखों में भरे हैं, 


इसलिए आँसू बड़े बुरे है। 

विरह में तो राधा ने भी आँसू बहाए थे, 

अशोक वाटिका के सब वृक्ष सीता के आँसुओं से ही नहाए थे ।

गहरी भावनाओं की व्याख्या के लिए न जाने कितने आँसू मरे हैं

इसलिये आँसू बड़े बुरे हैं।


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